रात की चांदनी भी मुखौटा पहनती है, बादलों की शरारत पे ध्यान ना दो सूरज भी अंधकार कर देता है चांद को दोष ना दो ये दुनिया ही बनावटी है, ऊपर वाले को दोष ना दो
घर उजाड़ कर किसी ने अपना पुराना कर्ज चुकाया लोगों को अस्पताल छोर किसी ने अपना कार खरीद लाया छोर चुके थे आशा, तब किसी ने छिपी दवा को निकाला सांस की थी जरुरत जिनको, उनसे अपना मौका बना डाला और, आज कुछ इंसानों ने अपना असली चेहरा दिखा डाला
दुजा मुल्क कहते हैं हममें बात का सलीका नहीं है तो जिनमें असल सालिका है वो बात कहा करते हैं खुद के घर को सजाते और बढ़ाते हैं वो लोग सजाते बढ़ाते घर को ही आग लगा देते हैं जगाने वाले तो सो गए, मुर्दा बनाने वाले क्यों जागने लगते हैं सवेरा इनकी ज़िन्दगी में आता नहीं और दूसरों के दिये बुझाने लगते हैं ना जाने कब सवेरा कहते कहते रात ले आते हैं घर की मां ही तो जन्नत है ये क्यों नहीं समझ पाते हैं
नियमों-कर्मो से बंध गया है ये समाज, ज़रा इन नियमों को तोड़ के तो देखो दो पंछी पिंजरे में कितने सुंदर लगते हैं, ज़रा वो पिंजरा खोल के तो देखो लोगों की सोच बंध चुकी है खुद की सोच से, ज़रा वो सोच हटा के तो देखो
धर्म की काली पट्टी चढ़ी है सबके उपर कोई मजहब नहीं बोलता, मेरे लिए तू कत्ल कर क्या पुजारी क्या मोहम्मद, मानवता है सबके उपर क्या बनाएगा पहचान तू इस दुनिया में, इंसान ही है तो तेरी असली पहचान
ज़रा दिल लगा के तो देख ले ज़रा दिल मिला के तो देख ले कब तक खेलेगा तू दिमाग का खेल कभी दो दिलों को जोड़ के तो देख ले कुर्सी पाने को तो सब लगे हैं ज़रा कुर्सी बनाने वालों को देख ले चारों तरफ़ बस आग ही आग है बीच के समुंद्र को तो देख ले..
दुश्मन हो गया है ये कलयुग प्यारी सी रौशनी का इंतज़ार है आज तेरे अपने भी नहीं चाहते तेरे शरीर को तिनकों के ढ़ेर का इंतजार है कभी समुंद्र बन, तो कभी सागर * किसी को मिट्ठे पानी का इंतज़ार है प्रकृति की चोट भी कम पड़ी इस दुनिया को एक बड़े तबाही का इंतज़ार है *( धर्म का जंजाल समुंद्र या सागर के खारे पानी जैसा है, मानवता किसी मीठे पानी जैसा है)
किसी को ख़ुद से ज़्यादा चाहना गुनाह होता है दिल टूटने को और शरीर छूटने को लगता है अजय था मैं इस पूरी दुनिया में किसी का दिल तोड़ने में कितना समय ही लगता है क्या हालात थे मेरे और क्या वज़ह थी मेरी ये तो कोई नहीं जानता है मेरी कारनामों के क़िस्से अभी दुनिया भर में सुनाया जाता है ज़रा कोई मेरी भी तो सुन लेते कभी।
आज शब्दों के आंसु निकाल पड़े होंगे, कविताओं की पंक्तियां बिखर गई होंगी, और आज छंद भी मुरझा गए होंगे, शब्दों की शरारत करने वाले रुकसत हो गए पंक्तियां सजाने वाले ना रहे छन्दो को खिलखिलाने वाले चले गए "बुलाती है मगर जाने का नहीं" 🙏🙏🙏