ज़रा वो पिंजरा खोल के तो देखो
नियमों-कर्मो से बंध गया है ये समाज,
ज़रा इन नियमों को तोड़ के तो देखो
दो पंछी पिंजरे में कितने सुंदर लगते हैं,
ज़रा वो पिंजरा खोल के तो देखो
लोगों की सोच बंध चुकी है खुद की सोच से,
ज़रा वो सोच हटा के तो देखो
नियमों-कर्मो से बंध गया है ये समाज,
ज़रा इन नियमों को तोड़ के तो देखो
दो पंछी पिंजरे में कितने सुंदर लगते हैं,
ज़रा वो पिंजरा खोल के तो देखो
लोगों की सोच बंध चुकी है खुद की सोच से,
ज़रा वो सोच हटा के तो देखो
Comments
Post a Comment