सलीका से समझ तक
दुजा मुल्क कहते हैं हममें बात का सलीका नहीं है
तो जिनमें असल सालिका है वो बात कहा करते हैं
खुद के घर को सजाते और बढ़ाते हैं
वो लोग सजाते बढ़ाते घर को ही आग लगा देते हैं
जगाने वाले तो सो गए, मुर्दा बनाने वाले क्यों जागने लगते हैं
सवेरा इनकी ज़िन्दगी में आता नहीं और दूसरों के दिये बुझाने लगते हैं
ना जाने कब सवेरा कहते कहते रात ले आते हैं
घर की मां ही तो जन्नत है ये क्यों नहीं समझ पाते हैं
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