बचपन की याद...
वे शैशव के दिन थे न्यारे,
आसमान पर कितने तारे!
कितनी परियाँ रोज उतरतीँ,
मेरे सपने मेँ आ आ कर मिलतीँ.
" क्या भूलूँ, क्या याद करूँ ? "
मेरे घर को या अपने बचपन को ?
आसमान पर कितने तारे!
कितनी परियाँ रोज उतरतीँ,
मेरे सपने मेँ आ आ कर मिलतीँ.
" क्या भूलूँ, क्या याद करूँ ? "
मेरे घर को या अपने बचपन को ?
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